Thursday, July 23, 2020

धर्म और धर्म सार

आज के युग में धर्म:-
हम उस देश में रहते हैं,जिसके कण-कण में धर्म मौजूद है और मानवीय चेतना से परिपूर्ण लोग उसे प्रत्येक क्षण महसूस करने के साथ अपनी दिनचर्या का पालन करते हैं...विद्वानों ने धर्म को अपने अपने मत और मान्यतों के हिसाब से परिभाषित किया है. धर्म क्या है ये अपने आप में इतना विराट है कि जितना ये ब्रहांड. इसलिए धर्म को किसी परिभाषा में बांधना उचित नहीं लगता. हां, धर्म को समझा जा सकता है जिसे जानना, एक तरह से भगवान को जानने जैसा है और इसके लिए सिर्फ भाव ( सद्भाव ) की जरूरत है और कुछ विशेष प्रयोजन और मेहनत नहीं करनी पड़ती. धर्म के भीतर दम, दान, संयम, ज्ञान, विज्ञान, त्याग, समर्पण, समेत अनगिनत विषय समाये हुए हैं...
धर्म हमारी धरती से भी पुराना है, सनातन हिंदू मान्यताओं के मुताबिक धरती माता पर जो कुछ वजन टिका है वो धर्म की धुरी पर ही टिका है. सतयुग से लेकर कलयुग के वर्तमान चरण तक धर्म ही है, जिसके जरिये निकली तपस्या का फल मानव जाति का संरक्षण कर रहा है. धर्म को शब्दों में बांधने के बजाये उसे महापुरुषों की जीवनी से समझना और फिर उसे अपने जीवन में उतारने का ही मूल्य है वरना धर्म जैसे संवेदनशील विषय पर कुछ लिखना आसान नहीं होता क्योंकि सद्पुरुषों ने भी अपने समय में बहुत कष्ट के साथ अपना जीवन बिताया लेकिन धर्म नहीं छोड़ा.धर्म कोई सामान नहीं है कि जिसे जब चाहे पकड़ा, जब मन आया छोड़ दिया.इसलिए धर्म को भगवान की तरह मानकर हमें अपनी हर सांस परमार्थ के काम में लगानी चाहिए.
धर्म में अगर ‘सार’ शब्द जोड़ दें तो ये कुछ महानुभावों को अटपटा लग सकता है लेकिन ऐसा करने से उसे समझने में और आसानी होगी.गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपनी रचनाओं में धर्म का अद्भुत वर्णन किया है, वहीं धर्मसार शब्द का प्रयोग उन्होने श्रीरामचरित मानस के अनगिनत प्रसंगों में किया है. धर्म का अर्थ ही शील धारण करना, यानि अपने अच्छे गुणों को बढ़ाना, तभी भविष्य में आप अपना नाम अमर कर सकते हैं क्योंकि ऐसे तो न जाने कितने मनुष्य धरती पर पैदा हुए और निर्धारित उम्र बीतने के बाद मर गए लेकिन अमर वही हुआ जिसने अपने धर्म का पालन करते हुए परमार्थ का काम किया. आपने किसी दोहे का ये हिस्सा जरूर सुना होगा परमारथ के कारने साधुन धरा शरीर. तुलसी बाबा ने मानस में लिखा है कि “ समुझब कहब करब तुम्ह जोई...धरम सारु जग होइहि सोई...’’ अर्थात धर्म को धारण करने वाला ही धुरंधर होता है भगवान राम के वनगमन के बाद जो भरत जी का आचरण है उसके आगे वशिष्ठ जी ऐसे मुनि की बुद्धि भरत जी के वस में हो जाती है और मुनिश्रेष्ठ कहते हैं कि हे भरत – जो तुम समझोगे , जो कहोगे और जो करोगे , वही धर्म होगा... वही धर्म का सार होगा. इसे आम के फल के उदाहरण से समझने की कोशिश करते हैं, आम के फल में तीन चीजें हैं छिलका, गुठली और रस ये तीनों फल के लिए आवश्यक है छिलके से फल सुरक्षित रहता है गंदा नहीं हो पाता, गुठली के द्वारा उसके जन्म की परंपरा बनी रहती है, गुठली जमीन में लगा दीजिए, सही सेवा करने पर आम का वृक्ष खड़ा गो जाएगा, और रस तो महत्वपूर्ण है ही. यानि आम को खाने वाला अगर गुठली और छिलके को भी खा ले तो आप उसे क्या कहेंगे, बस ये न करके सिर्फ रस पर ध्यान देने का जो विवेक है वो धर्म से आता है. भरत जी के लिए सूर्यवंश की पुरोहिती स्वीकार करने वाले गुरु वशिष्ठ जी ने जो कहा उसका अर्थ ये था कि अभी तक उन्होने जो कुछ किया था उससे उन्होने धर्म को समझा था, लेकिन भरत अपने शील-गुण और आचरण की वजह से धर्मसार हो गए.पहले भरत जी और वशिष्ठ जी की दृष्टियों में बड़ा मतभेद था लेकिन जब भरत जी ने अपने आचरण से धर्म को ही धारण कर लिया तो दोनो की दृष्टि एक हो गई. आगे भरत जी जब भाई राम से मिलने जाते हैं तो कहते हैं कि महाराज अब कीजिए सोई.. सब कर धरम सहित हित होई... यानि धर्म का आचरण ही आगे चलकर रामराज्य की स्थापना का मूलमंत्र बनता है ... धर्म का एक मंत्र भी आपने सुना होगा धर्मो रक्षति रक्षित: इसका विस्तार फिर कभी होगा.
धर्म को समझना आसान भी है और मुश्किल भी रहीम दास जी के एक दोहे से अपने लेख को विराम देना चाहूंगा, देखिए कितनी गहराई छुपी है इस दोहे में – रहिमन बात अगम्य की... कहन सुनन की नाहिं, जानत है ते कहत नाहि, कहत है ते जानत नाहिं...
((जारी))

Tuesday, January 12, 2016

संभल कर लेना रे !

संभल कर लेना रे !  भारत में राष्ट्रीय आपदा का पर्याय बन चुकी सेल्फी अब महामारी बन गई है...आज इसे खुद को देखने के एक नए तरीके के रूप में जाना जाने लगा है...क्रेज ही इतना ज्यादा है कि अपने बजरंगी भाईजान सलमान खान तक इस पर बने गाने पर ठुमका लगाते नजर आते हैं...लेकिन इसका जानलेवा होना क्यों महज अखबारों की चंद लाइनों में सिमट जाता है क्य़ों इस पर कोई खबरिया चैनल कोई बहस या चर्चा नहीं करता...क्यों सिर्फ 30 से 60 सेकेंड की तस्वीर दिखाकर अपनी जिम्मेदारी दिखाकर पल्ला झाड़ लिया जाता है...ताजा घटनाओं की बात करें तो मुंबई में समंदर किनारे कॉलेज जाने वाली दो छात्राओं की जान चली गई और जम्मू में किले की छत से गिरकर एक युवक की मौत हो गई...सिर्फ हिंदुस्तान की खबरों को छानेंगे तो 2015 में ही सैकडों ऐसे जानलेवा मामले सामने आएंगे...जब लोगों के घरों के चिराग बुझे या उनका कोई अपना विकलांगता का शिकार हो गया...खुद को दूसरे के नजरिए से समझने की इस सनक में डूबे युवाओँ की दीवानगी अब डरा रही है...कभी गहराई से सोंचा है कि क्या ये वाकई आपका सेल्फ (Self) है ?...दरअसल सेल्फ वो होता है वो जिंदगी खुशहाल बनाता है नाकि उसे खत्म करता है...जानलेवा सेल्फी के मामले में सोंचते हुए इमानदारी से बताइयेगा कि क्या सोशल नेटवर्किंग साइट पर चंद लाइक और कमेंट पाने की चाहत आपका व्यक्तित्व निखार रही है या फिर आपको मनोरोगी बना रही है...ये भी समझना जरूरी है कि आप हफ्ते या फिर महीने में औसतन कितने बार अपने स्मार्ट फोन की गैलरी में जा कर खुद को झांकते हैं या फिर फेसबुक और इंस्टाग्राम पर जाकर अपनी पुरानी पोस्ट के कमेंट्स और लाइक का विश्लेषण करते हैं...यकीनन एक बहुत बड़ी संख्या में लोग ऐसा विश्लेषण नहीं करते और आदतन सेल्फी को लेकर विचारों का नया ताना बाना बुनने में जुटे रहते हैं...इन्ही सोशल साइट्स पर साल भर बाद जब मेमोरी शेयर का ऑप्शन आता है या आपकी सबसे बेस्ट सेल्फी कौन या फिर जानिए आपका प्रेम कितना सच्चा है या फिर क्लिक करिए और जानिए कब और कैसे होगी आपकी मौत जैसे दिमाक को झकझोर कर देने वाले ऑप्शन आते हैं उस दौरान आपका दिमाग कुछ नया करके अपनी सेल्फी अलग और जुदा करने की चाहत में जुट जाता है...इसके साथ ही खास मौकों पर फला फला की शादी में पहनी गई ड्रेस और खींची गई सेल्फी को देखने की इच्छा एक बार फिर बलवती होती है और फेसबुक ने इसे भी पिछले सालों में कितना बदले आप जैसे आप्शन देकर आसान भी बना दिया है...दरअसल ये लेख किसी भी तरह से टेक्नॉलजी, न्यू मीडिया या फिर सोशल मीडिया के विरोध में नहीं है लेकिन अति हर चीज की बुरी होती है और इसे लेकर भी लोगों को जागरूक और जिम्मेदार लोगों को अपनी भूमिका जरूर निभानी चाहिए...सेल्फी को अंतर्राष्ट्रीय आपदा कहना भी गलत नहीं होगा क्योंकि अमेरिका , यूरोप और ऑस्ट्रेलिया के रिसर्चरों की रिपोर्ट्स में एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी सेल्फी लेने की चाह को मनोवैज्ञानिक बीमारी बताया गया है...डॉक्टरों के हवाले से भी ये साफ है कि ज्यादा सेल्फी खींचना आपको अवसाद में ढकेलता है लिहाजा वक्त रहते संभल जाएं नहीं तो क्या पता अगले किसी हादसे की खबर में कहीं आपका ही नाम न जुड़ जाए...मानव स्वभाव के चलते अक्सर हम अपने से संपन्न, प्रभावशाली और रूपवान लोगों को जानने समझने की चाहत रखते हैं ...पिछली सदी के आखिरी यानि 1990 के दशक में सेलिब्रेटीज़ के निजी पलों की तांकझांक और लाइफ स्टाइल देखने के लिए " स्टार डस्ट " जैसी महंगी मैगजीन पैसे खर्च कर पढ़ी जाती थी...अब जमाना बदला तो दुनिया डिडिटल हो गई है लिहाजा कम पैसे में यही काम इंटरनेट के जरिए होने लगा और आज नेता,अभिनेता और खिलाड़ियों के फॉलोवर्स की संख्या करोड़ों तक पहुंच गई...आज हर बड़ी खबर, बयान या फिर तस्वीर ट्रेंड करती है कभी ट्विटर पर तो कभी यू ट्यूब पर लिहाजा हमारे ऐसे पत्रकारों को भी ये सब करना पड़ता है...खैर मकसद सबके अलग अलग हो सकते हैं...बात सेल्फी को हो रही है तो क्या ऐसा नहीं हो सकता कि 125 करोड़ की आबादी वाले देश के युवा और युवतियां एक नए नईं सोंच के साथ सोशल साइट्स पर खुद का विश्लेषण करने के बजाए दूसरों की मदद करने के बाद उनके चेहरों पर आई मुस्कान वाली सेल्फी अपने मोबाइल में सहेज कर रखने की आदत ट्रेंड करें ? यकीन मानिये ऐसा होने लगा तो यकीन मानिये किसी जरूरतमंद की दुआएं आपको एक दिन कम से कम अपने शहर का सेलिब्रेटी या स्टार जरूर बना देंगी जिन्हे आप वर्चुअल दुनिया में दिन रात फॉलो करते हैं...दुआओं से बना स्टारडम न सिर्फ आपको सुरक्षित रखेगा बल्कि आपको कभी अभिजात्य होने का साइड इफेक्ट का अहसास भी नहीं कराएगा...जैसा कि एक सेलुलर कंपनी के विज्ञापन में एक युवा अपना सब कुछ बेंच कर बाहर जाते समय उसकी वफादारी के एवज में 200 MB इंटरनेट शेयर करने के बाद नौकरी ढू़ढने की सलाह देकर निकल जाता है...और बैकग्राउंड से आवाज़ आती है इंडिया शेयर करेगा इंडिया केयर करेगा...    

Sunday, July 26, 2015


आजादी के 68 साल भी ये भारत देश का दुर्भाग्य ही माना जाएगा कि यहां पर लगभग सभी राजनीतिक दलों ने अपने अपने नफे नुकसान के हिसाब से कम्युनलिज्म की परिभाषा गढ़ चुके हैं ... 1993 के मुबंई सीरियल ब्यालास्ट के आरोपी याकूब मेनन की फांसी के मुद्दे को लेकर जिस तरह धार्मिक सहानुभूति का चोला पहना कर लोग अपनी सियासत चमका रहे हैं ... ये निंदनीय है क्योंकि आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता इसलिए आतंकी चाहे वो किसी मजहब या फिर जाति का हो उसे किसी और चश्मे से नहीं देखना चाहिए ... शत्रुघ्न सिन्हा, राम जेठमलानी, प्रकाश करात और नसीरुद्दीन शाह जैसे कई बॉलिवुड से जुड़े लोगों ने राष्ट्रपति के पास एक अपील की चिट्ठी भेजी है ... जिसमें याकूब की फांसी की सजा को माफ करने की बात लिखी है वैसे भी जन भावनाओं से जुड़ा ये संवेदनशील मुद्दा सोशल मीडिया के चलते देश भर में वायरल है .... जो देशहित में तो कतई नहीं दिखाई पड़ता ... कभी मध्यप्रदेश के कद्दावर नेता दिग्विजय सिंह ने भी याकूब के मामले पर भी अपनी राय दी उससे उनकी प्रासंगिकता पर एक बार फिर से सवाल उठने लगे हैं  ... सलमान खान को भी देश भर में उनके भारी विरोध के बाद ट्वीट वापस लेना प़ड़ा ... ऐसे में आज क्या सुप्रीम कोर्ट से याकूब को कोई राहत मिल पाएगी ये देखना बड़ा दिलचस्प होगा....

शेष आगे ........  

Monday, December 21, 2009